योग | yoga |

international yoga day

योग | yoga |

युगों युगों से 

युगों युगों तक 

जीवन में है योग 

कि मानव योगी है .


भुनसारे का जूड़ा तपना 

प्राण-साँस-आसन का अपना

मेल बहुत संयोगी है

कि मानव योगी है  


सिन्धु सा ये पात्र 

जगत में प्रेम भरा है मात्र 

ह्रदय तृण भोगी है 

कि मानव योगी है 


-जलाने अग्नि इस तन की 

समिधा डालीं हैं मन की 


मंत्रा  साँसों में भर के 

अहम् को स्वाहा सा करके 


यज्ञ फल भोगी है, 

कि मानव योगी है.


-लपक के अचला के कम्पन्न 

व्योम कण स्फुर हैं संपन्न 


करूँ अवसान मैं दोषों का 

धारके व्रत कई कोसों का 


पंथ निः रोगी है ,

कि मानव योगी है .


युगों युगों से 

युगों युगों तक 

जीवन में है योग 

कि मानव योगी है .



जय हिन्द 

--------------

Post a Comment

0 Comments