
योग | yoga |
युगों युगों से
युगों युगों तक
जीवन में है योग
कि मानव योगी है .
भुनसारे का जूड़ा तपना
प्राण-साँस-आसन का अपना
मेल बहुत संयोगी है
कि मानव योगी है
सिन्धु सा ये पात्र
जगत में प्रेम भरा है मात्र
ह्रदय तृण भोगी है
कि मानव योगी है
-जलाने अग्नि इस तन की
समिधा डालीं हैं मन की
मंत्रा साँसों में भर के
अहम् को स्वाहा सा करके
यज्ञ फल भोगी है,
कि मानव योगी है.
-लपक के अचला के कम्पन्न
व्योम कण स्फुर हैं संपन्न
करूँ अवसान मैं दोषों का
धारके व्रत कई कोसों का
पंथ निः रोगी है ,
कि मानव योगी है .
युगों युगों से
युगों युगों तक
जीवन में है योग
कि मानव योगी है .
जय हिन्द
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