भँवरे | bhanware |

kavyapanthika






उड़ चले हैं साथ भँवरे ,
बेदखल बद फूँक लेके.
कुछ हिलोरें फूल की हैं,
कुछ गुहारें  खुशबुओं की.


नेक नियति को चपेले ,
उग्र उन्मादों को पेले .
आप वाणी की धमक से ,
बा और बे झुण्ड होकर.

उड़ चले हैं साथ भँवरे ,
बेदखल बद फूँक लेके,


मानसों में मद की मूरत ,
मय की फुग्गी मत्त सूरत .
झेंपने को झाड़ करके
लाज को दे दे के ठोकर .

उड़ चले हैं साथ भँवरे ,
बेदखल बद फूँक लेके,


स्वप्न भोगी के बसेरे,
दूर दृष्टि में धँसे रे.
धसानों में हृदय की मालिशें,
 हैं डाकारीं खूब सोकर.

उड़ चले हैं साथ भँवरे ,
बेदखल बद फूँक लेके,


अर्जियों को चटकनी से ,
मर्जियों को पटकनी से .
टाँगा है और चांपा अब तक,
हश्र सारा बोझ ढोकर .

उड़ चले हैं साथ भँवरे ,
बेदखल बद फूँक लेके,
कुछ हिलोरें फूल की हैं ,
कुछ गुहारें  खुशबुओं की.
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जय हिन्द 


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