पहले भीगा हुआ तिनका
फिर सूखी हुई लकड़ी
धागे का मोम
फिर
मोम का धागा
फिर
माचिस की तीली
फिर
रोगन पटाखे का
और फिर
बारूद बम का
बनके बंधा और दबा
दबा
फिर और दबा
दब-दब के अब साक्षात बम हूँ .
फिर भी कम हूँ .
अब सोचता हूँ
ज्यादा होने के लिए .
इत्मिनान से सोने के लिए .
रोज की कमाई से जिनका .
पेट पलता है एक- एक दिन का .
आशियाँ फिर से उनका बनाऊँ
बनके भीगा हुआ तिनका .
अब मैं तिनका हूँ
तिनका-तिनका .
बीच में उनके
घर बनना है
जिनका-जिनका .
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जय हिन्द
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