कुदरत से हिंदुस्तान हूँ मैं .

kavyapanthika




गूँगे के लिए जुबान हूँ मैं 

भूखे के लिए दस्तरखान हूँ मैं 

सब मुरादों में ढल जाऊँगा सबकी 

कुदरत से हिंदुस्तान हूँ मैं .

मालिकाना हक़ सौंपकर तुमको 

अपने ही घर का मेहमान हूँ मैं .

आँसू बहाते हैं लोग मेरे आगोश में 

हँसता हुआ एक श्मशान हूँ मैं .

चले हैं तीर न जाने कितने मुझसे 

कोने में पड़ी पुरानी कमान हूँ मैं .

जिस तरफ बाजार है हल्का ज़रा 

वहाँ किराये की छोटी सी दुकान हूँ मैं .

वक्त से पहले उठ जाता है अक्सर 

अधपका-अधूरा वो उफान हूँ मैं .

जमींदारों का जहाँ रुतबा है शाही 

वहाँ किसानों का बचा हुआ लगान हूँ मैं .

जहाँ मुश्किलें सताएँ साथी तुम्हें 

मुझको बुलाना बहुत आसान हूँ मैं .

बस एक कदम बढ़ाने की देर है 

ख़ुद-बख़ुद दौड़े आओगे ढलान हूँ मैं .

सपनों भरी नींद दूँगा तुम्हे 

अँधेरे जंगल में ऊँची मचान हूँ मैं .

क्यों कश्तियाँ उठाने की बात करते हो 

बेहद हवाओं में बादवान हूँ मैं .

रोज का सफर है, रोज की मंज़िलें  

किस्मत रोज लेती वो इम्तिहान हूँ मैं .

सब मुरादों में ढल जाऊँगा सबकी 

कुदरत से हिंदुस्तान हूँ मैं .

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जय हिन्द 

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