
है कर गुजरने की शक्ति
तो कैसा लोच ,
कुछ पल अकेले बिता और दिन भर सोच .
संग्रहण कर शक्तियों का
प्रतिक्रिया तो दिखला ,
खरोंचें बन चुकीं जो
उन्हें भर
स्वयं को पिघला .
ह्रदय में उमड़ रहा सागर
वो टकराएगा तट से ,
तट बद्ध करो चाहे सीधे या हठ से .
हैं साधारण सारे
रिक्त स्थान भी शेष नहीं ,
बहुतीर ऐसे तरकश का साथ विशेष नहीं .
रिक्त स्थान प्रस्तुत करो
अनंत शक्तियों को ध्यायो ,
ब्रम्हास्त्र पाने के लिए
कहीं आओ कहीं जाओ .
विचलित होंगे चक्षु
भाव-भंगिमाएँ सारी ,
माथे पर बल पड़ेंगे
पसीना टपकेगा भारी .
मंद स्वर से बेहतर है
रुंध जाए गला ,
शंखनाद होगा
सीखो साँस भरने की कला.
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जय हिन्द
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