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kavyapanthika





ठूँठ हमको रास है,
जो हमारे पास है .
सोई हैं इसकी जड़ें 
पर
  कुछ तो इसमें खास है .

क्या तुला और क्या तुलेगा 
किसी घन-शज़र से 
जो मेष है. 
मेरी अतड़ियों के रसे का 
छिड़काव अभी शेष है. 

बेलियों ने 
इसको
 चांपा ,दाबा, खींचा,
 कुचला,मसला,
 तीना अंस पे गोड़े धर-धर
 थर्राया 
हड्डा पसला.

 अंदरूनी सनातन केशिकाएँ ,
  विद्यमान हैं, बनके उन्मेशिकाएँ .

 बाल की खाल भी बाँका 
 हो न पाई,
 सब खोया नदिया ने लेकिन उद्गम
 खो न पाई .
तीर, भाले, तोप-गोले पड़ते रहे 
परछाईं पर,
गैराणु पहुँचा नहीं कोई
 उस ऊँचाई पर.

 जहाँ से
 इंडिया
 (india)
 हो रहा है आईकॉनिक ,
दूर है
 पाइरेसी की पकड़ से इसका टॉनिक.

 हर संस्कृति के हाड़-मांस से टपके द्रवों का
 बैंक है,
 तुम चुल्लुओं में आओ चले, हमारा संस्कार
 टैंक है.

 घुलो और घोलो,
व्यवस्था से हम तरल हैं,
 गंदला किया तो 
कठिन
नहीं तो सरल हैं .

मुट्ठियों में लाओगे 
कुछ,
 ले जाओगे गठरियों में, 
गाड़ी अपनी पाओगे 
सब की सब पटरियों में. 

मेरे देश के ईंधन का
 हर कोई माने है सानी ,
पानी जिसको रास न आया
वो है फिर पानी पानी.

अब तक के
 'स्पेम' सारे
 'फ्लिक' करो ,
"एक्चुअल.in" पर
 क्लिक करो .

स्केन होगी आत्मा,
शुरू होगा खात्मा .
अनचीन्ही अनडौल 
महारत का ,
सबसे अलग मिजाज़ है
 मेरे भारत का. 

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जय हिन्द 

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1 Comments

  1. मेरे देश के ईंधन का

    हर कोई माने है सानी ,

    पानी जिसको रास न आया

    वो है फिर पानी पानी.👍👍

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