
प्रतिभा कर्म वाहिनी है,
मैं कर्म नौका बना रहा हूँ .
उदधि की मायावी लहरो,
ठहरो !
--गगन घन अन्धकार
चहुँ ओर सूनी बयार,
नुकीले झाड़,गहरी खाई
लगें शाप देते सियार.
वीभत्सता के ऐसे प्रयोजन से
सदा अकिंचन रहा हूँ .
--पथ विसर्पण इठलाए
सत्य को कितना ही झुठलाए,
प्रबल जिज्ञासा जहाँ ठहरे
वहाँ से निषेध हट जाए.
है जलवायु विशेष उर की
बहुत उर्वरा रहा हूँ .
--रेखाएँ समय की खिचतीं
पलकें अनगिनत खुलतीं मिचतीं,
आलिंगन तने का है
लताएँ भी संग-संग सिंचतीं.
भूमिका छोटी,बड़ी उद्येशिका
वाटिका सजा रहा हूँ.
--बेजल परुष भुरभुर
है सामने विश्वास के चुरमुर ,
तनिक उस बीज को देखो
जो ऊगा फाड़ के पाषाण का उर.
अवरोध में मुड़ना है सूचक
असल बल झुठला रहा हूँ.
--चक्षु चषक बनके
भर लाएँ पियूष को मन के,
हैं प्रस्तुत हो कोई समर
शर सारे धनु पे तनके.
व्याकुल है एकाग्रता अविलम्ब
विजयी होने जा रहा हूँ .
उदधि की मायावी लहरो,
ठहरो !
मैं आ रहा हूँ .
---------------------
जय हिन्द
Kavita (kavya) is a poem or poetry. Hindi Kavita means Hindi Poem. kavyapanthika provides the best poems in Hindi, best Kavita in Hindi, The poetry of kavyapanthika is unique in feelings. Here words speak, arrangement of words knock the heart and soul. Best Hindi Kavita creat musical wave in our mind.

0 Comments
Comment ✒️✒️✒️