
चाँद की बिंदिया ,
सितारे
नैन में निंदिया .
न सकुचा दूर खड़ी होकर,
मिलेगा क्या कनचढ़ी होकर .
आ छिटक के ,
चुटकियों में
आ
पिघल के ,
एक टक है आँख ठहरी ,
साँस होने को है गहरी .
लटों की सिलवटों से
शिकन माथे की ढल गई है ,
पलक पर जुगनुओं की
चहल कदमी संभल गई है.
हँसी होंठों से बलखाके
ओट में कनखियों की है ,
तितलियों की सगाई में
विदाई पंखियों की है .
मस्तियाँ थक के सहमीं हैं ,
ओझल गहमा गहमी हैं .
खींचते हैं रिझाने को
पालने में बाँहों के ,
साँझ अंधिया जाने से
धुंधलके उनको राहों के .
लेने को दम किनारे
आगोश में अपने ,
बैठे हैं चंद्रमा पर
सलोने अजनबी सपने .
वो नदियाँ बातूनी
तकियों पर
बादल सा छा गईं हैं ,
बौछारें चुप्पियों की
सर से पाँव तक
भिगा गई हैं .
तराशा है जन्नतों सा
आफताबों ने बड़े होकर ,
मेरे बचपन की परछाईं को
कतारों में खड़े होकर .
अब मौन झूमेगा
रागिनी की मुंडेरों पर ,
चुलबुले बोल फूटेंगे
चेतना के सबेरों पर.
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जय हिन्द
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