लबरेज़ था उसका दामन चिंगारी से
मैं ही नहीं गया था तैयारी से .
शोर में इश्क के सुन न सका
शायद किसी ने कहा हो- "होशियारी से" .
रुआँसी मुस्कानों पर रख दिया दिल
जिसे उठाया था आँसुओं की किलकारी से .
ख्वाबों से खाली पड़ीं थकी नजरें
भरी रहीं नींदों की इश्तेहारी से .
बेकुसूर निकली हमारी नियत हमेशा
शक उसके अपराधी निकले बेशुमारी से .
इश्क उसका आज भी इश्क है खरा
बस उसे पेश आना है ईमानदारी से .
चलो तन्हाइयों में फरमाएँ आशिक़ी
सज़दे अन्जाम नहीं पाते पहरेदारी से .
इस कदर नज़दीकियाँ बढ़ालो अपनी
निपटलें किस्मतों की मक्कारी से .
-----------------------------------
जय हिन्द


0 Comments
Comment ✒️✒️✒️