रुआँसी मुस्कानों पर

kavyapanthika




लबरेज़ था उसका दामन चिंगारी से 

मैं ही नहीं गया था तैयारी से .

शोर में इश्क के सुन न सका 

शायद किसी ने कहा हो- "होशियारी से" .

रुआँसी मुस्कानों पर रख दिया दिल 

जिसे उठाया था आँसुओं की किलकारी से .

ख्वाबों से खाली पड़ीं थकी नजरें 

भरी रहीं नींदों की इश्तेहारी से .

बेकुसूर निकली हमारी नियत हमेशा 

शक उसके अपराधी निकले बेशुमारी से .

इश्क उसका आज भी इश्क है खरा 

बस उसे पेश आना है ईमानदारी से .

चलो तन्हाइयों  में फरमाएँ आशिक़ी 

सज़दे अन्जाम नहीं पाते पहरेदारी से .

इस कदर नज़दीकियाँ बढ़ालो अपनी 

निपटलें किस्मतों की मक्कारी से .

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जय हिन्द  

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