तेरी उँगलियों के बल पे | Teri ungliyon ke bal pe |

kavyapanthika






जैसे ही ठाना मिज़ाज बदलने का मोड़ के ,
राहें झट से खड़ी हो गईं हाथ जोड़ के .

हैं दिखने में गलीचे लफ्जाँ दी आशिकी ,
हैसियत संजो नहीं पाती महीन धागे तोड़ के .


पलड़ों ने झुठलाया उमेठ के वजनदारी, 
तत्क्षण हमने जड़ दिए पासंग होड़ के .


तेरी उँगलियों के बल पे दौड़ें लगाईं हमने ,
बेवजह हम डर रहे थे दीवारें छोड़ के .


वक्त खाकर मेरे दर्द भी मोथरा गए हैं ,
फजीतियाँ अपनी देखता हूँ जख्मों को फोड़ के. 


प्यास तेरी तयशुदा आगोश में हमारे,कि 
अब बादलों को रखा है गिलासों में नीचोड़ के.


आँच दिल ने और बारिशें आँख ने झेलीं ,
पीठ फेरे मुहब्बत बैठी सात रंग ओढ़ के .


हाथों में आ गईं  एक दिन मेरी गुरबतें  ,
बहुत दूर फेक दिया कुछ दूर खचोड़ के .


अब होती नहीं हैं  किसी बात पर ग़फ़लतें , 
इश्तियाल ए हयात रखती है गर्दिशें मरोड़ के .
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जय हिन्द

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