
क्या हद दर्जा क्या है आला,
तुमसे नीर क्षीर गुर आए,
तुमने थोथा भरसक चाला .
मेरे द्वार की मैं हूँ सांकल ,
तुम हो मेरा चाबी ताला .
तुमसे कहा सुनी होने पर ,
हिरदय में पड़ जाता छाला .
है दरारी भीत हमारी ,
तुमने रंग दिया बेहतर वाला .
ना नुकुर का मुलम्मा मेरा ,
खा जाए मकड़ी का जाला .
तेरी हाँ में वैसा दम है ,
जैसी मिसाल-ए-अल्लाह ताला .
रखते हो तुम भनक धूप की ,
प्रतिक्रिया में बादल काला .
आँतों में जब तुम उतरो तो ,
चढ़ न पाए मगज में हाला .
-----------------------------
जय हिन्द

0 Comments
Comment ✒️✒️✒️