बस वही शाम बनके | bas vahi sham banke |

kavyapanthika



जी रहा हूँ एक तामझाम बनके,
किसी और की मोहब्बत का इंतकाम बनके.
हर शाम इंतजार करते हैं लोग कई लोगों का, 
मैं हूँ कि बैठा हूँ, बस वही शाम बनके.

कठिनाईयों के दौर से क्यों होगी मुझको शिकायत, 
तुम्हारी अंतिम नजर अब भी बाकी है आराम बनके. 


अब अँधेरे में भी जिन्दगी भटकती नहीं है,
तुम्हारी हिदायतें हमसफ़र हैं लगाम बनके.
 

बदलना तो मौसमों की फिदरत है पुरानी, 
हाज़िर हूँ नए-नए मौसमों का इंतजाम बनके. 


खाली हूँ बहुत मगर एहसास नहीं होता, 
यादें बिखर जाती हैं रोजाना काम बनके. 


सुखाता रहूँगा भीगे हुए तिनके सारे, 
आशियाना बनेगा यूँ ही सुबह-शाम बनके. 


जितनी चाहे मर्जी कीमत बढ़ा लो अपनी ,
बाज़ार का रुख करूँगा वाज़िब दाम बनके. 


आज तुम्हारे नाम से पहचान है मेरी, 
कल तुम भी पहचाने जाओगे मेरा नाम बनके.

-------------------
जय हिन्द 


Kavita (kavya) is a poem or poetry. Hindi Kavita means Hindi Poem. kavyapanthika provides the best poems in Hindi, best Kavita in Hindi, The poetry of kavyapanthika is unique in feelings. Here words speak, arrangement of words knock the heart and soul. Best Hindi Kavita creat musical wave in our mind.


Post a Comment

2 Comments

  1. बहुत खुब

    जिंदगी की जद्दोजहद के बीच
    एक उम्मीद भरा शाम कायम है

    ReplyDelete

Comment ✒️✒️✒️