इश्क फ़रमाते रहे (ishq farmate rahe)

kavyapanthika




इश्क फ़रमाते रहे बड़ी तबियत से.
खौफ खाते रहे अपनी बेखौफ़ियत से.
तुम ही तुम थे सिफ़र से उफ़क तक,
क्या देखते किसी और को इसी नीयत से.


परेशां हुए जहान की तंगहाली देखकर,

ठौर ठिकाने आये तुम्हारी मासूमियत से. 



हम दिल की हालतों को तवज्जो देते रहे ,

तुम गिरेबाँ नाप कर ले गए हैसियत से .



खुशनुमाँ मौसमों की दरकार कब रही दिल को,

हम खैर मनाते रहे तुम्हारी खैरियत से .



एड़ियाँ रखता रहा तुम्हारी एड़ियों के निशान पर, 

दिलशाद लफ़्ज कोसों दूर कर गए असलियत से .


असबाब निगाहे सुपुर्द दिले माकूल जो ,
बस एक शाखपोशी निकली शज़र की मिल्कियत से.
 


पेशगी न मिली गिरकर संभलने की मंशा को ,

खाक होने तक है किनारा ज़माने की नसीहत से. 



हकदारों में सबसे ऊपर है नाम तुम्हारा ,

अपने हिस्से की दुआएँ ले लेना मेरी वसीयत से. 

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जय हिन्द 


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