
उड़ने का हुनर कैद है
न उड़ पाने के डरों में.
सर उठाने से कुछ नहीं होगा
जब तक गाँठ लगी है परों में.
खामोशियाँ बयाँ करती हैं दर्दे दिल की चुभन,
आवाजें अब नामुराद हैं ज़िन्दा पैकरों में.
बंद दरवाजों में इश्क़ घुटा नहीं करते,
खिड़कियाँ उम्मीद हुआ करतीं हैं सब घरों में.
महलों में पनपती है गुलदाउदी अदा,
शोखियाँ गुलमोहरों की आती हैं खंडहरों में.
दरिया के गुमान पर जो मुस्कुरा देते हैं,
वो कश्तियाँ लेकर सीधा कूच करते समन्दरों में.
तेरी अंगड़ाईयों का सावन मुझको भिगा जाता,
मैं तर बतर पड़ा रहता हूँ बिस्तरों में.
सिलसिले जब चले सब रख दिया ताक पर,
जो थमे सिलसिले तो सब ठोकरों में.
कब्र पर आकर इक हमको भी बख्श देना,
जो जन्नतें पाईं तुमने गैरों के आसरों में.
यार मारा गया निगाह की बदसुलूकी से,
सब देखते रहे उँगलियों के निशाँ नश्तरों में.
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जय हिन्द
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4 Comments
Badiya
ReplyDelete✌️
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहर तरफ सिर्फ अन्धेरा नहीं देखा जाता
रोज इस डर में इजाफ़ा नहीं देखा जाता।
Bahut hi shandar Rohit bhai
ReplyDeleteComment ✒️✒️✒️