अलग अलग दो पलते कण
टकराए वो जलते कण .
पीछे होने को, और
टूटने को ,दोनों मुकर गए .
ठोक के छाती आगे को चलते कण .
बीते दिनों की ऊर्जा से
संचालित थे भाव पटल .
नयी बात को टालते से टलते कण .
तार नहीं वो हिला पाए
मस्तक को जो ताने थे .
सोई हुई आवाजों से छलते कण .
लिखे हुए को लेखा न
न जोड़ा विभूति से .
गीली बातों के साये में गलते कण .
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जय हिन्द
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