दो कण

kavyapanthika


अलग अलग दो पलते कण 

टकराए वो जलते कण  .

पीछे होने को, और 

टूटने को ,दोनों मुकर गए .

ठोक के छाती आगे को चलते कण .

बीते दिनों की ऊर्जा से 

संचालित थे भाव पटल .

नयी बात को टालते से टलते कण .

तार नहीं वो हिला पाए 

मस्तक को जो ताने थे .

सोई हुई आवाजों से छलते कण .

लिखे हुए को लेखा न 

न जोड़ा विभूति से .

गीली बातों के साये में गलते कण .

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जय हिन्द

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