जी में धधकती बेला है .
जीवन बहुत अकेला है .
पहुँच गए किस कोने में
छोड़ सल्ल बिछोने में
बस स्मृतियों का रेला है .
अनुभव अनुगामी होकर
हृदय जा रहे ले ढोकर
रह-रहकर तुमने ठेला है .
मन में उत्सव संचारी
इसका प्रमाण तू बनजा री
खेल अनोखा खेला है .
रिक्त चिन्ह को पाट दिया
अवगुंठित रोध को काट दिया
है अवशेष किंतु जो झेला है .
सोच नहीं जाती झूले पर
छूना है तो छूले पर
प्रयोजन नया नवेला है .
साये में रहना कच के
बहुतेरों से तुम बच के
दृष्टिपात का मेला है .
आभासी हो गया शरीर
शामिल हो गई मन में पीर
ह्रदयघात अलबेला है .
जी में धधकती बेला है .
जीवन बहुत अकेला है.
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जय हिन्द
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